अविनाशी

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अविनाशी प्रभु श्री राम लाल जी महाराज

ज्ञानशक्तिसमारूढं तत्वमालविभूषितम
भुक्तिमुक्तिप्रदातारं तस्मै श्री गुरुवे नमः


(ज्ञान शक्ति पर आरूढ़ तत्व माला से शोभित, भोग और मोक्ष के देने वाले उन श्री गुरुदेव को नमस्कार है।)

योग विद्या अनादि काल से भारतवर्ष में विद्यमान रही है। कई ऋषि मुनियों द्वारा इस विद्या का प्रचार - प्रसार किया जाता रहा है। बीच में यह लुप्त प्रायः भी हो जाती रही है किन्तु फिर से इसे पुनर्जीवित करने हेतु इस विद्या के ज्ञाता इस धरा पर अवतरित होते रहे हैं जिनके प्रयासों से यह ज्योति प्रज्वलित होती रही रही। योगी बनने के लिए केवल एक जन्म की साधना पर्याप्त नहीं। जितने भी महानं योगी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन वृत की ओर दृष्टिपात करें तो यह ज्ञात हो जाता है कि कई जन्मों परिश्रम , साधना सर्वोपरि ईश -कृपा से साधक कल्याण मार्ग में आरोहण करता है। ऐसे ही एक महानं योगी उनीसवीं सदी में प्रभु राम लाल जी महाराज के रूप में इस भारत भूमि में विख्यात हुए।

आपका जन्म वर्ष 1888 में राम नवंमी के पुनीत अवसर पर अमृतसर के पवित्र शहर में हुआ। आपके पूजनीय पिता श्री गंडा राम एवं माता पूज्य श्रीमती भाग्यवंती थी। आपके पिता जी प्रकांड पण्डित एवं प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य थे। आपकी जन्म कुण्डली देखकर ही समझ गए थे की यह कोई साधारण बालक न होकर कोई दिव्य आत्मा शरीर धारण कर उनके गृह में अवतरित हुई है। इसके प्रमाण उनके बचपन से ही मिलने शुरू हो गए थे। इनकी आयु उस समय तीन चार वर्ष की ही थी जब अमृतसर की एक बृद्ध महिला प्रत्यक्ष अनुभूति हुई कि उसके गुरुदेव नया शरीर धारण करके पंडित गंडा राम जी के घर में अवतरित हुए हैं। वह अपना शरीर छोड़ने से पहले अपने गुरुदेव के दर्शन करना चाहती थी। सो उसने अपने पुत्रों को आदेश दिया कि मेरे गुरुदेव को तुरंत पण्डित जी के घर से ले आयें ताकि मैं उनके दर्शन कर सकूँ। वे तुरंत पंडित गंडाराम जी के घर पहुंचे एवं अत्यंत विनय के पश्चात् बालक (प्रभु राम लाल जी महाराज जी )को अपने घर ले आये। बृद्धा देखते ही अपने गुरुदेव के चरणों से लिपट गई और अत्यन्त प्रसन्नता पूर्वक देह त्याग दी। आपके पिता जी की इच्छा आपको विद्वान ज्योतिषाचार्य बनाने की थी। इसी हेतु इन्हे योग्य विद्वान पण्डित के पास शिक्षाप्राप्त करने हेतु भेजा जो ज्योतिष विद्या भी जानते थे। लोग उनके पास अपना भविष्य जानने के लिए आया करते थे। एक दिन वे कहीं गए थे वहां प्रभु राम लाल जी ही विद्यमान थे। उन्होंने वहां आये लोगों की जन्मपत्री देखकर बिलकुल सही भूत व भविष्य का ज्ञान कराया। लोग उनसे बहुत प्रभावित हुए क्योकि उनकी बताई हुई प्रत्येक घटना बिलकुल ठीक निकली। आके गुरु जी ने जब लोगों में उनकी लोकप्रियता को बढ़ते देखा तो स्वयं उन्हें अपनी गद्दी पर बिठा दिया। इस प्रकार समय बीत रहा था किन्तु इनका मन कही और ही विचरण कर रहा था। इन्हे गुरुदेव प्राप्ति की धुन स्वार थी। कहते हैं जिस प्रकार शिष्य गुरुदेव की कामना करते है वैसे ही गुरुदेव भी अपने योग्य शिष्यों को ढूंढ लेते हैं। प्रभु राम लाल जी की उत्कट इच्छा को जानकर नेपाल हिमालय की गुफा जो बारह महीने बर्फ से ढकी रहती है , वहां बैठे सदाशिव महात्मा जो चौबीसों घंटे समाधि में लीं रहते हैं ,उन्होंने इन्हे नेपाल धाम में अपनी ओर आकर्षित कर लिया। वहां पहुँचने पर इन्होने पहली बार अपने गुरुदेव के दर्शन किये। उनकी नाभि मंडल तक पहुँचती शुभ्र दाढ़ी , लम्बी जटाएं , आँखों पर लटकती भ्रू और मुखमण्डल पर अलौकिक तेज था। प्रभु श्री राम लाल जी महाराज ने वहां अप्पने गुरुदेव की अत्यन्त सेवा सुशुणा की जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने उनकी चौरासी एक क्षण में करवा दी। अब प्रभु राम लाल जी महाराज सब प्रकार के कर्म बंधनों से मुक्त एक दिव्य आत्मा थी। उनके गुरुदेव ने अब इन्हे जान मानस के कल्याण हेतु इस धरा पर वापिस भेज दिया। अब प्रभु लाल जी पूर्ण शक्ति सम्पन्न थे। उन्होंने यहाँ आकर कई लोगों पर उपकार किये।

राम रती उद्धार
जमुनिया धार पर राम रती नाम की एक दुश्चरित्र नारी थी। उससे दुखी होकर उसके माता पिता उसकी हत्या करने का विचार कर रहे थे। संयोगवश वह प्रभु राम लाल जी महाराज की दृष्टि में आई। उन्होंने उसे योग विद्या सिखाई जिससे वह एक उत्कृष्ट देवी के रूप में परिवर्तित हो गई और सारे गावं द्वारा पूजित की जाने लगी। वह एक परम योगिनी बन कर सबकी इच्छा पूर्ती करने लगी। गांव के लोग के लोग उससे अत्यंत स्नेह करते थे। यद्यपि प्रभु श्री राम लाल जी महाराज उसे और उन्नत अवस्था प्राप्त करने हेतु हिमालय भेजना चाहते थे परन्तु वहां के लोगों के प्रेमवश ऐसा हो न सका। प्रभु राम लाल जी महाराज ने कुछ समय सवाई गांव में निवास किया। वहां उन्होंने एक गुफा का निर्माण कराया। कच्ची मिटी की यह गुफा आज "श्री सिद्ध गुफा " के नाम से विश्व विख्यात है और वर्तमान में योगी डॉ दास लाल जी महाराज के तत्वाधान में इसका सञ्चालन हो रहा है। प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में विशेषकर प्रभु राम लाल जी महाराज के जन्म दिवस राम नवमी को यहाँ लोग अपनी मनोकामना की पूर्ती हेतु आते हैं। यहाँ जो बी भी आता है , उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती हैं। श्री प्रभु जी ने सवाई गांव के लोगों की कई प्रकार से मनोकामना पूर्ण की। लोग इन्हे बाबा जी के नाम से ही जानते थे। श्री प्रभु जी का मन कुछ समय पश्चात् इस गुफा को छोड़कर जाने का हुआ। लोगों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने बहार से ताला लगा दिया और स्वयंम गुफा द्वार पर चारपाई डालकर सो गए। भला योगी कब किसी के रोके रुकते हैं। प्रभु जी अत्यंत शुक्ष्म रूप से बहार निकल गए। रास्ते में कई लोगों को दर्शन दिए जिन्होंने आकर बताया कि उन्होंने तो प्रभु जी को आकाश मार्ग से जाते देखा है। लोगों जब ताला खोलकर देखा तो सचमुच प्रभु जी वहां नहीं थे। लोगों को बहुत दुःख हुआ। प्रभु जी ने आकाशवाणी द्वारा उन्हें कहा कि वे फिर मिलेंगे। पहचान सको तो पहचान लेना। इसके पश्चात् प्रभु जी कुछ समय बाद अमृतसर में आ गए और वहां से योग प्रचार का कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने अमृतसर ,छहरटा व ऋषिकेश आश्रमों की स्थापना की। इन आश्रमों में योग साधना , योग आसन आदि की शिक्षा प्राप्त कर हजारों लोग लाभान्वित हुए हैं। उनके कई शिष्य थे जिन्होंने प्रभु राम लाल जी महाराज से दीक्षा प्राप्त कर योग मार्ग में आरूढ़ होकर यौगिक उन्नति की। प्रभु श्री राम लाल जी महाराज ने कसी लोगों की दैहिक, लौकिक ,दैविक और आध्यात्मिक कठिनाइयों का निराकरण किया। कइयों को जीवन दान भी दिया। प्रभु जी ने वर्ष 1938 में अमृतसर में देह त्याग किया। उनके देहावसान पर भी कई चमत्कार हुए। एक तरफ तो उनके शिष्य उनके निष्प्राण शरीर को अमृतसर में सम्भाले बैठे थे तो दूसरी ओर प्रभु जी स्थूल रूप से कई लोगों से मिलते रहे। एक तो उनके कुटुम्बीय भ्राता थे जिनके साथ उन्होंने भोजन भी किया तथा अपने शिष्यों को सन्देश भिजवाया कि वे अपने शिष्यों से फिर मिलेंगे। जब उनके भाई अमृतसर पहुंचे तो देखा कि प्रभु जी निष्प्राण वहां अपने शिष्यों के बीच में पड़े थे। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। जब उन्होंने प्रभु जी से मिलने व उनका सन्देश बताया तो सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। योगियों की माया को कौन जान सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी के शब्दों में ,"सो जानत तुम्ह देहि जनाई। " प्रभु जी की दिव्य लीलाओं का वर्णन उनके अत्यंत प्रिय शिष्य योगिराज अनन्त श्री चन्दर मोहन जी महाराज द्वारा लिखित "दिव्य जीवन दर्शन " नमक पुस्तक में सविस्तार किया गया है।