अविकारी

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अविकारी डॉ० दास लाल जी महाराज

तद्विधि प्रणिपातं परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यतिं ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्व दर्शिनः।।
इसलिए तत्व को जानने वाले ज्ञानी पुरुषों से भली प्रकार दण्डवत प्रणाम तथा सेवा और निष्कपट भाव से किये हुए प्रश्न द्वारा उस ज्ञान को जान वे मर्म को जानने वाले ज्ञानीजन तुझे उस ज्ञान का उपदेश करेंगे।
हिमाचल प्रदेश के लाहौल प्रान्त के पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य में स्थित एक सुन्दर गांव में 1 जनवरी 1955 को विप्र बंश में योगी का जन्म हुआ। पूजनीय पिता जी का नाम पण्डित श्री प्रेम दस् शर्मा व माता जी का नाम श्री मति देव दासी जी हैं। पिता जी मंदिर में पुजारी थे अतः परिवार में धार्मिक वृत्ति स्वतः विद्यमान थे । योगी बाल्यावस्था से ही मित भाषी , गम्भीर , शान्त एवं मननशील प्रवृति के हैं। दो अढ़ाई वर्ष की अवस्था में अनन्त विस्तृत आकाश ओर निहारते , सुमधुर घण्टी जैसा नाद लगातार श्रवण में आता और उसे सुनते रहते।

प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही विद्यालय में हुई। घर में पढ़ाई का वातावरण था। सँस्कार ऐसे थे की शुचिता का बहुत ध्यान रहता। वर्ष 1960 में प्रथम कक्षा में प्रवेश पाया। पढ़ने में निपुण थे और जीवन में मनुष्य जीवन की सबसे अंतिम ऊंचाई को छूने का विचार आता रहता। वर्ष 1970 दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगे पढ़ाई के लिये कुल्लू कालेज में दाखिला ले लिया। अब मन में योग के संस्कार प्रबल हो रहे थे। इसी दौरान अपने चाचा जी द्वारा लाई "योगी गुलाब दास " नामक एक पुस्तक हाथ लगी। इसमें योगी गुलाब दास जी का विवरण था जो पूना के टेकरी नामक एक गांव में रहते थे एक छोटी सी गुफा थी जहाँ वह साँप , बिच्छू या अन्य जंगली जानवरों से निर्भीक रहकर निवास करते और ध्यान समाधि में लीन रहते योगी की किशोरावस्था थी ,कठिन तप व योग साधना के प्रति सहज ही आकर्षण उत्पन्न होने लगा। अध्यात्म पिपासा बढ़ने लगी थी। कालेज में बी ए II में प्रवेश करते ही अचानक योग के संस्कार उदित होने लगे। जल नेति के बारे में सुन रखा था ,इसके अतिरिक्त कुछ योगासन , ज्योति , पुष्प का ध्यान करते। कालेज के पुस्तकालय से अध्यात्म सम्बन्धी पुस्तकें पढ़ते। संसार नश्वर है , समय थोड़ा है " I have miles to go before I sleep" कविता मन में घर कर गई। वर्ष 1974 में परीक्षा थी लेकिन यपग संस्कारों की प्रबलता के कारण कालेज छोड़ने का मन बना लिया। इसी दौरान भारतीय स्टेट बैंक के एक कर्मचारी श्री कृष्ण चंद शर्मा जो इनके पडोसी थे , उन से "सिद्ध योग " पत्रिका पढ़ने के लिए प्राप्त की। उनसे ही आनन्दकन्द योगी राज श्री चन्द्रमोहन जी महाराज का परिचय प्राप्त हुआ। अब क्या था एक दिन घर से आये एक मित्र के साथ , किसी को बताये बिना सवाई के लिए चल पड़े। गुरुदेव के समक्ष पहुँचने पर उन्हें अपने पलंग पर बैठे पाया। दाढ़ी मूँछ रहित , सुड़ौल बलिष्ठ योगी उनके सम्मुख थे। जिनके दीदार को आँखे तरस रही थी अंन्ततः उनके दर्शन हो ही गए। यह 18 जनवरी 1974 का शुभ दिन था उन दिनों योग दीक्षा देने से पहले शिष्य के वंश कुल खान पान इत्यादि के बारे में आश्वस्त होने पर ही दीक्षा मिलती थी योगी के विषय में आश्वस्त होने पर गुरुदेव ने इन्हें अपनी चरण -शरण प्रदान की। प्रथम दिवस से ही योगी दास लाल जी आश्रम सेवा में जुट गए। इन्होंने गुरू आज्ञा का अक्षरशः पालन दिया जिससे गुरुदेव के कृपा पात्र बन गए।

योगी क्योंकि घर से भागकर बिना किसी को सूचित किये सवाई आये थे सो घर वाले बहुत चिन्तित थे। किसी प्रकार इनका पता पाकर इनके अग्रज इन्हें वापिस घर ले जाने के लिए सवाई पहुँचे। यद्यपि इनका मन नहीं था फिर भी इन्हें अपने बड़े भाई श्री हीरा लाल शर्मा जी के साथ घर लौटना पड़ा। योगी जी घर में लगभग एक महीना रुके किन्तु इनका मन तो सवाई में ही रम रहा था। जब बिलकुल रहा नहीं गया तो एक दिन चुपके से प्रातः 4 बजे ही फिर से सवाई धाम के लिए निकल चले मार्ग की कठिनियों को पर करके पुनः अपने गुरुदेव के श्री चरणों में पहुँच गए। अब दूने उत्साह से आश्रम के कार्यों में जुट गए। इनके सेवा भाव भक्ति एवं श्रद्धा के साथ साथ नित्य प्रति नियम से योग साधना अभ्यास को देखकर गुरुदेव अत्यन्त प्रसन्न होते थे और उन्होंने अन्ततः योगी जी को अपनी सेवा में ले लिया। गुरुदेव जहाँ जाते ,योगी जी हमेशा साथ रहते। इस प्रकार इन्हें अपने गुरुदेव के सानिध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला। गुरुदेव ने शैक्षणिक ज्ञान बृद्धि के लिए इन्हें आदेश दिया जिसके फलस्वरूप इन्होंने स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की फिर संस्कृत -इंग्लिश में M A व तत्पश्चात PH D कर ली। दवाओं का अच्छा ज्ञान था सो आयुर्वेद में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। पठन पाठन में रूचि थी सो वेद, शास्त्रों व उपनिषदों का अच्छा अध्ययन हो गया। गुरुदेव की आज्ञा सबके लिए कम से कम 2 घण्टा अभ्यास व 1 घण्टा ध्यान के लिए रहती थी सो योगी जी ने कभी इस आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया। चाहे कहीं भी हों ,किसी भी स्थिति में हों, यह अभ्यास कभी नहीं छूटा। गुरुदेव जी के साथ रहते थे। फलस्वरूप इन्हें ऐसे कार्यक्रमों के विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त हो गया। जून 1989 में गुरुदेव अनन्त श्री चन्द्रमोहन जी महाराज का कार्यक्रम मंडी हिमाचल प्रदेश का था गुरु महाराज जी ने मंडी में आश्रम बनाने का आदेश दिया और एकान्तवास मण्डी में करने की इच्छा प्रकट की। उनके आदेशानुसार मण्डी आश्रम का निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया।
25 जून 1990 को हम सबके आराध्य गुरुदेव अनन्त विभूषित श्री चन्द्रमोहन जी महाराज ने अपना भौतिक शरीर त्याग कर इहलीला समेट ली। बहुत ही दुःख भरा दिन था। योगी जी का तो मानो संसार ही लुट चुका था। कई दिन शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता रही। किन्तु फिर मन को कड़ा करके गुरुदेव के योग प्रचार -प्रसार कार्य को आगे बढ़ाना अपना कर्त्तव्य मानकर इस पर ध्यान देना शुरू किया। प्रारम्भ में सवाई आश्रम में वातावरण ख़राब हो रहा था। गुरुदेव के दूसरे शिष्य लोग आश्रम पर अधिकार स्थापित करना चाहते थे। अतः इस दूषित वातावरण को कर योगी वहाँ से निकल गए। इधर योग सिद्ध आश्रम मण्डी का निर्माण कार्य चल रहा था। धरातल में ध्यानकक्ष व ऊपर की मंजिल में कमरा रसोई स्नानागार बन गए थे। मण्डी वासियों ने इनसे मंडी आने का आग्रह किया जिसे सहर्ष मानकर ये मंडी पहुँच गए। मण्डी आश्रम की बागडोर इन्हें सौंप दी गई। कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना गई जिसके अन्तर्गत यह आश्रम आज भी चल रहा है। मंडी आश्रम से सभी वरिष्ठ गुरुभाईयों के आग्रह व सदगुरु महाराज की अनन्त प्रेरणा स्वरुप इन्होंने योग दीक्षा प्रदान करना प्रारम्भ किया। आज स्थिति यह है कि इनके शिष्यों की सँख्या हजारों में हो गई है। इनके आशीर्वाद से लोग योग पथ पर आरूढ़ होकर अपना जीवन धन्य कर रहे है इनके शिष्यों में अभूतपूर्व उत्साह व्याप्त है। इसके परिणामस्वरूप योगी जी के तत्वाधान में कई आश्रमों का प्रादुर्भाव हो गया है। मण्डी आश्रम के अध्यक्ष तो योगी जी है ही इसके अतिरिक्त भी कई जगह पर इनकी अध्यक्षता में इनके शिष्यों द्वारा जिला पानीपत करनाल के अन्तर्गत घरोंडा में एक अति सुन्दर आश्रम बनाया है। इससे प्रेरित होकर बनारस मण्डल द्वारा गांव टोडरपुर (बनारस ) में भव्य आश्रम बन गया है। सालवन आश्रम तो सदगुरुदेव अनन्त श्री चन्द्रमोहन जी महाराज के समय से ही चल रहा है किन्तु इसे और अधिक मान्यता योगी डॉ० दास लाल जी महाराज के द्वारा प्रदान की गई है।
इन सभी आश्रमों में योग अभ्यास साधना व योगासन नियमित रूप से कराये जाते हैं। इसके अतिरिक्त रामनवमी, विजयदशमी ,जन्माष्टमी ,शिवरात्रि महोत्सव के साथ साथ श्रावण मास अनुष्ठान इत्यादि भी यहाँ सभी साधकों द्वारा सामूहिक रूप से सम्पन्न किये जाते हैं। योगी जी के शिष्य यहाँ से आध्यात्मिक व शारीरिक लाभ प्राप्त करके अन्यजनों तक भी इसे पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। समय समय पर योगी जी महाराज योग शिविरों द्वारा भी योग पताका फहराने का कार्य कर रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि आज इनके शिष्यों का कुनवा न केवल भारत वर्ष बल्कि विदेशों में भी फ़ैल चुका है। जो योग को प्रचारित -प्रसारित कर रहे हैं।